Discovering the new me!
मेरी सोच......
एक राह पर चल रहें हैं हम ,मंजिल भी एक है ,
तो फिर कैसी हैं येह दूरीयाँ , जब अल्लाह भी एक है।
कह हम बहुत कुछ देते हैं, लेकिन सुनते हम कुछ भी नही ,
अपनी ही उलझनों में बंधे रहते हैं, दुनिया की हमें परवाह नही।
इधर उधर भटकना तो सभी को आता है ,
जो अपनी मंजिल तक पहुँच जाये, वही खिलाड़ी कहलाता है।
वो ज़िन्दगी ही क्या, जिसका कोई लक्ष्य न हो,
वो ज़िन्दगी ही क्या, जो दूसरों के लिए कुर्बान न हो।
ऐसा ही कुछ नज़ारा हम हर रोज़ देखते हैं,
इत्तेफ़ाक यह है.....की "सब चलता है" .....
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